महाकवि विद्यापति - (संक्षिप्त जीवनी)
मैथिलीक इतिहास में विद्यापति एकटा एहेंन महाकवि भेलाह, जिनका लs कs हम सभ मैथिल बंधू आय आन - आन भाषा - भाषी के समक्ष गौरवक अनुभव करै छी ! बंगाली समुदाय हिनक कृतिसँ मुग्ध भs कs हिनका बंगाली विद्वान मैंन लेलैथ जे की महाकवि विद्यापति बंगाली नै मिथिलावासी छलाह आ मैथिली में अपन रचना लिखने छलाह !
महाकवि विद्यापतिक जन्म सन १३६० ई. में मधुबनी जिलाक बिस्फी गाम में भेल छलैन ! महाकवि विद्यापति बैशैवारगढ़ मूलक काश्यप गोत्रीय मैथिल ब्रह्मण छलाह ! हिनक बाबूजीक नाम गणपति ठाकुर आ माताजीक नाम हासिनी देवी छलैन ! मिथिलाक प्रसिद्ध विद्वान हरि मिश्र सँ महाकवि विद्यापति शिक्षा ग्रहण कएने छलाह !
महाकवि विद्यापतिक बाबूजी गणपति ठाकुर राजा गनेस्वरक दरबार में मंत्री छलाह ! तें ओ नेत्रहिसँ अपन बाबूजीक संग गणेश्वरक दरबारमे जाइत-अबैत छलाह ! गणेश्वरक बाद कीर्तिसिंह राजा भेलाह ! अतः ओ हिनका दरबारमे जाए-आबऽ लगलाह ! महाकवि विद्यापति एहि कीर्तिसिंहक नामपर अपन पहिल पुस्तक कीर्तिलता लिखलनि ! एकर भाषा अपभ्रंश (संस्कृत-प्राकृत मिश्रित मैथिली) अछि, जकरा ओ अवहट्ट कहने छथि ! एहि भाषा पर हुनका गर्व सेहो छलनि ! ओहि पुस्तकक पहिल पल्लबक ई पहिल पंक्ति देखल जे सकैत अछि ......
देसिल बयना सब जन मिट्ठा ! तें तैसन जम्पओ अवहट्ठा !! अर्थात देशी भाषा (अपन भाषा) सभके मीठ लागैत छैक !
महाकवि विद्यापति अपन एहि भाषा मे कीर्तिपताका आ कीर्तिलता नामक ग्रंथ लिखलनि ! एहि दुनू ग्रंथक अलावा ओ संस्कृत मे भू-परिक्रमा, पुरुष परीक्षा, लिखनावली, शैव सर्वस्वसार, गंगावाक्यावली, दानवाक्ययावली, दुर्गा भक्ति तरंगिनी, विभाग सार, न्याय पत्तल, ज्योति प्रदर्पण, वर्षकृत्य, गोरक्ष विजय (नाटक ), मणिमंजरी (नाटक) आदि ग्रंथक रचना कएलनि !
एहि तरहें देखल जाय तँ महाकवि विद्यापति मात्र गीतकारे नहि, अपितु यात्रा वृतांत लेखक, कथाकार, पत्र लेखक, निबन्धकार आदि छलाह ! मुदा सभ सँ बेसी हुनका ख्याति भेटलनि गीतकारक रूप मे ! एहि रूप मे ओ अमर भऽ गेलाह ! महाकवि विद्यापतिक जतेक गीतसभ अछि ओहिमे अधिकांश गीत सभ श्रृंगार-रस प्रधान अछि, जाहिमे संस्कृत शास्त्रक अनुसार वय: सन्धि, नखशिख, विरह, अभिसार, सद्य: स्नाता, कौतुक, मान, मिलन आदिक वर्णन बहुत मनमोहक ढ़ग सँ कएल गेल अछि ! एतबे नै "घन घन घनन गुगुर कतऽ बाजए , हन हन कर तुअ काता" वला भैरवी वन्दना सेहो ओ लिखलनि जे वीररसकेँ साकार करैत अछि ! एहि तरहें महाकवि विद्यापति अपन कलमरूपी तरूआरि नीक जकाँ चारू दिस भजलनि ! ईएह कारण अछि जे महाकवि विद्यापतिकेँ जतेक उपाधि देल गेलनि ओतेक उपाधि संसारक कोनो कवि नहि पाबि सकलाह ! आइ ई हमरालोकनिक समक्ष कविकोकिल, कविकण्ठहार, कविरञ्जन, कविशेखर, सुकवि, महाकवि, दशावधान, पञ्चानन , अभिनव जयदेव आदि उपाधिसँ जानल जाइत छथि !
मिथिलाक ई महाकवि सन १४५० ई मे कैलाशवासी भऽ गेलाह !!
3 एक टिप्पणी दिअ।:
जितमोहन जी विद्यापति क सम्बन्ध मे जानकारी क लेल धन्यवाद ।विद्यापति साहित्य क एकटा अन्य पक्ष क जानकारी क लेल विदेह 74म अंक देखू ।एहि मे विद्यापति साहित्य के सम्बन्ध मे हमर एकटा छोट छीन आलेख अछि ।
bada neek lagal, atek jankari nai chala hamra, dhanay bhelahu hum e janeka. Jai maithili jai Mithila,
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