ससन-परस रबसु अस्बर रे...
ससन-परस रबसु अस्बर रे देखल धनि देह !
नव जलधर तर चमकय रे जनि बिजुरी-रेह !१!
आजु देखलि धनि जाइत रे मोहि उपजल रंग !
कनकलता जनि संचर रे महि निर अवलम्ब !२!
ता पुन अपरुब देखल रे कुच-जुग अरविन्द !
विकसित नहि किछुकारन रे सोझा मुख चन्द !३!
विद्यापति कवि गाओल रे रस बुझ रसमन्त !
देवसिंह नृप नागर रे, हासिनि देइ कन्त !४!
नव जलधर तर चमकय रे जनि बिजुरी-रेह !१!
आजु देखलि धनि जाइत रे मोहि उपजल रंग !
कनकलता जनि संचर रे महि निर अवलम्ब !२!
ता पुन अपरुब देखल रे कुच-जुग अरविन्द !
विकसित नहि किछुकारन रे सोझा मुख चन्द !३!
विद्यापति कवि गाओल रे रस बुझ रसमन्त !
देवसिंह नृप नागर रे, हासिनि देइ कन्त !४!
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