आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक...

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल..

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, दुःख ककरो नहिं देल !
एही जोगिया के भाँग भुलैलक, धतुर खोआई धन लेल !१!

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, जन भरी के नहिं जान !
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, रतियक सन नहिं कान !२!

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत अभरन, अपने रुद्रक माल !
अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, अनका लै जंजाल !३!

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, वाहि देवा नहिं थोर !
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइनि, इहो थिका दिगम्बर मोर !४!

0 एक टिप्पणी दिअ।:

एक टिप्पणी भेजें

  © Vidyapati Geet. All rights reserved. Blog Design By: Jitmohan Jha (Jitu)

Back to TOP